सुंदर कथा ४७(श्री भक्तमाल – श्री गीता दंडवती जोग परमानंद जी) Sri Bhaktamal – Sri Gita Dandvati Jog Parmanand ji

दक्षिण भारत के वारसी नामक प्रांत में महान भक्त जोग परमानन्द जी का जन्म हुआ था । जब ये छोटे बालक थे, इनके गाँव में भगवान की कथा तथा कीर्तन हुआ करता था । इनकी कथा सुनने में रुचि थी । कीर्तन इन्हें अत्यन्त प्रिय था । कभी रात को देरतक कथा या कीर्तन होता रहता तो ये भूख प्यास भूलकर मन्त्रमुग्ध से सुना करते । एक दिन कथा सुनते समय जोग परमानन्द जी अपने आपको भूल गये ।

व्यासगद्दीपर बैठे वक्ता भगवान् के त्रिभुवन कमनीय स्वरूप का वर्णन कर रहे थे । जोग परमानन्द का चित्त उसी श्यामसुन्दर की रूपमाधुरी के सागर में डूब गया । नेत्र खेला तो देखते हैं कि वही वनमाली, पीताम्बर धारी प्रभु सामने खडे हैं । परमानन्द की अश्रुधारा ने प्रभु के लाल लाल श्री चरणों को पखार दिया और कमललोचन श्रीहरि के नेत्रों से कृपा के अमृत बींदुओं ने गिरकर परमानन्द के मस्तक को धन्य बना दिया ।

लोग कहने लगे कि जोग परमानन्द पागल हो गये ।  संसार की दृष्टि मे जो विषय की आसक्ति छोडकर, इस  विष के प्याले को पटककर व्रजेन्द्र सुन्दर मे अनुरक्त होता  है, उस अमृत के प्याले को होटोंसे लगाता है, उसे यहांकी मृग मरीचिका में दौड़ते, तड़पते, जलते प्राणी पागल ही कहते हैं । पर जो उस दिव्य सुधा रस का स्वाद पा चुका, वह इस गड्ढे जैसे संसार के सड़े कीचड़ की और केसे देख सकता है । परमानन्द को तो अब परमानन्द मिल गया ।

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सुंदर कथा ४६(श्री भक्तमाल – श्री कर्माबाई ) Sri Bhaktamal – Sri Karmabai

श्री कर्माबाई जी नामकी एक भगवद्भक्ता देवी श्री पुरुषोत्तम पुरी (जगन्नाथ पुरी)में रहती थीं । इन्हें वात्सल्य भक्ति अत्यन्त प्रिय थी । ये प्रतिदिन नियमपूर्वक प्रात:काल स्नानादि किये बिना ही खिचडी तैयार करतीं और भगवान् को अर्पित करतीं थी । 

प्रेम के वश में रहनेवाले श्रीज़गन्नाथ जी भी प्रतिदिन सुघर- सलोने बालक के वेशमें आकर श्री कर्मा जी को गोद में बैठकर खिचडी खा जाते । श्री कर्मा जी सदा चिन्तित रहा करती थीं कि बच्चे के भोजन में कभी भी विलम्ब न हो जाय । इसी कारण वे किसी भी विधि विधान के पचड़े में न पड़कर अत्यन्त प्रेम से सबेरे ही खिचडी तैयार कर लेती।

एक दिन की बात है । श्री कर्मा जी के पास एक साधु आये । उन्होंने कर्मा को अपवित्रता के साथ खिचडी तैयार करके भगवान् को अर्पण करते देखा । घबराकर उन्होंने श्रीकर्माजी को पवित्रता के लिये स्नानादि की विधियां बता दीं । भक्तिमती श्री कर्मा जी ने दूसरे दिन वैसा ही किया । पर इस प्रकार खिचडी तैयार करते उन्हें देर हो गयी । उस समय उनका हृदय रो उठा कि मेरा प्यारा श्यामसुन्दर भूख से छटपटा रहा होगा ।

श्री कर्मा जी ने दुखी मन से श्यामसुन्दर को खिचडी
खिलायी । इसी समय मन्दिर में अनेकानेक घृतमय पक्वान्न निवेदित करने के लिये पुजारी ने प्रभु का आवाहन किया ।प्रभु  जूंठे मुँह ही वहाँ चले गये ।

पुजारी चकित हो गया । उसने देखा उस दिन भगवान् के मुखारविन्द में खिचडी लगी है । पुजारी भी भक्त था  उसका हदय क्रन्दन करने लगा । उसने अत्यन्त कातर होकर प्रभु से असली बात जानने की प्रार्थना को । 

भगवान ने कहा – नित्यप्रति प्रात:काल मैं कर्माबाई के पास खिचडी खाने जाता हूँ । उनकी खिचडी मुझे बडी मधुर और प्रिय लगती है । पर आज एक साधुने जाकर उन्हें स्नानादि की विधियाँ बता दीं ,इसलिये खिचडी बनने में देर हो गयी, जिससे मुझे क्षुधा का कष्ट तो हुआ ही, शीघ्रता में जूंठे मुँह आ जाना पडा ।

भगवान की आज्ञानुसार पुजारी ने उस साधु को  प्रभु की सारी बातें सुना दीं । साधु घबराया हुआ श्री कर्माजी के पास जाकर बोला- आप पूर्व की ही तरह प्रतिदिन सबेरे ही खिचडी बनाकर प्रभु को निवेदन कर दिया करे । आपके लिये किसी नियम की अनावश्यकता नहीं है । श्री कर्माबाई पुन: उसी तरह प्रतिदिन सवेरे भगवान को खिचडी खिलाने लगी ।

श्री कर्माजी परमात्मा के पवित्र और आनन्दमय धाम मे चली गयी, पर उनके प्रेमकी गाथा आज भी विद्यमान है । श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में आज़ भी प्रतिदिन प्रात:काल खिचडी का भोग लगाया जाता है ।